Search This Blog

Wednesday 3 March 2010

शिव सेना बनाम भारत


शिव सेना का नारा कि महाराष्ट्र केवल मराठियों के लिए है अब आकर्षण खो चूका है! परिणाम के तौर पर अब शिव सेना की मराठी वोटों पर पकड़ ढीली होती जा रही है!



जबकि पूरा सुरक्षा बल शाह रुख खान की फिल्म "मेरा नाम खान है" के विपरीत शिव सेना के सम्भावित गुंडागर्दी को रोकने के लिए ताय्नात था, आतंकवादियों ने मराठी शहर "पुणे" पर हल्ला बोल दिया! जिस स्थिति में पुणे विस्फोट हुआ था वह बिलकुल ऐसे ही थी जब कि २६/११ के हमले में मराठी सिक्यूरिटी अधिकारी हेमंत करकरे सहित बहुत से वीर मार दिए गए थे! शिव सेना उन्हें बचा नहीं सकी थी!

केवल मराठी के काज़ की बात करना कहने की तुलना में करने से सरल है! शिव सेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के लोग भारतवासियों को यह सन्देश देना चाहते हैं कि " अगर तुम मराठी नहीं हो तो विदेश जा कर कमाई कर सकते हो और शिक्षा ले सकते हो लेकिन तुम्हारे लिए महाराष्ट्र में कोइ जगह नहीं है!"

यहाँ यह बात याद रहे कि शिव सेना हिन्दुओं के भगवन "शिव" जी कि पार्टी नहीं है! बहुत सारे लोग ऐसा समझ कर शिव सेना को अपना समर्थन दे देते हैं! शिव सेना केवल एक राजनैतिक पार्टी है और इस का नाम वयोवृद्ध मराठी नेता शिवाजी की तरफ मंसूब है! यह पार्टी सभी हिन्दुओं के कल्याण की बात करने के बजाय, राजनितिक लाभ प्रदान करने के लिए, सिर्फ मराठियों की बात करती है! और एम एन एस उस के विचारधारा का अन्धा अनुयायी है!

उनका दावा है कि महाराष्ट्रा सिर्फ मराठियों के लिए ही है! उन के अलावा किसी भी अन्य शख्श को यह हक नहीं है कि वहां रह कर आजीविका कमाए या शिक्षा प्रदान करे! हाँ, अगर वह मराठी संस्कृति में अपने आप को रंग लेता है और मराठी बोलने लगता है, तो कोई बात नहीं है! लेकिन इस में भी कुछ संदेह है! विदेशियों का, जो मराठी नहीं हैं, महाराष्ट्र में स्वागत है! जिस तरह चाहें वह यहाँ रह सकते हैं! फिर केवल गरीब भारतीयों को ही सेना के निर्देश का पालन करने पर मजबूर किया जाता है?

इस से भी ज्यादा आश्चर्यजनक है के जो लोग गैर मराठियों के खेलाफ़ आन्दोलन में सब से आगे हैं वही अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में शिक्षा दिलाते हैं! मगर दूसरों को मराठी सीखने पर मजबूर करते हैं! अगर भारत में किसी भाषा का सीखना अनिवार्य बनाना हो तो प्राथमिकता हिंदी को देनी चाहिए, कि यह हमारी राष्ट्रीय भाषा है!

बेशक, कोइ भी कौम अगर अपने पूर्वजों की भाषा से जुड़ी नहीं रहती है तो वह अपनी संस्कृति की रक्षा करने में नाकाम रहे गी! भाषा संस्कृति को प्रभावित करती है और जो अपनी संस्कृति को छोड़ देता है उस की पहचान भी मिटने के कगार पर हो जाती है! अगर केवल इस भावना के साथ सेना पार्टिओं के लोग मराठी से प्रेम करते हैं तो ठीक है! बल्कि उन कि तारीफ़ करनी चाहिए! उन्हें मराठी भाषा के लिए चिंतित रहना चाहिएये और सदा उन उपायों को सोचना चाहिए जिन से यह भाषा बहुत सारी बाधाओं के होते हुए भी पनपती रहे! पर विडंबना यह है कि उत्तर भारतीयों को मराठी सीखने पर मजबूर किया जता है और बहुत सारे मराठी माध्यम शैक्षणिक संस्थान, महाराष्ट्र में भी, बंद हो रहे हैं! क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है? कोई मराठी नेता अपने बच्चों को इन स्कूलों में शिक्षा नहीं दिलाना चाहता है!

अगर किसी को कुछ भी प्रचार करना है, तो उस का आदर्श तरीका यह है कि सब से पहले वह खुद उसे उदाहरण के द्वारा दिखाए! मराठी मानुस के अभियान में ऐसा नहीं दिखता है! जो कुछ यह कर रहे हैं उस में ईमानदारी का अभाव है?

शिव सेना और एम् एन एस दोनों पार्टियाँ अवसरवादी लगती हैं! उनहोंने मराठी अधिकारी हेमंत करकरे की बहुत ज्यादा मुखालफत की! करकरे ने कुछ उन आतंकवादियों को चेहरे को अनावरण करना शुरू किया था जो बहुत सारे मराठियों कि हत्या के लिए जिम्मेदार थे! यहाँ तक कि सैनिकों नें, करकरे को जान से मारने की धमकी भी दे डाली थी!

उल्टा उन्होंने एक गैर मराठी, साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, को समर्थन दिया था! कथित तौर पर आतंकवादी होने की आरोपी ठाकुर, पर मालेगांव बम विस्फोटों में कई मराठियों को मार डालने का इलज़ाम है! न केवल ठाकुर, बल्कि गिरोह के अन्य सदस्यों को, जो नांदेड़ और सांगली में मराठियों को मारने के आरोपी हैं, शिव सेना से समर्थन प्राप्त हुआ! यह इंगित करता है कि सिर्फ "मराठी" ही अकेला कारण नहीं है!

दरअसल, ठाकुर और इस मामले में गिरफ्तार अन्य १० आतंकवादियों को शिव सेना का मर्थन इस लिए मिला कि उनका लक्ष्य, घृणा की राजनीति, एक हैं!

शिव सेना और एम् एन एस के ज़रीये की जाने वाली क्षेत्रीय और धार्मिक राजनीती के कारण चाहे हिन्दू हों या मुस्लिम, दोनों महाराष्ट्र में खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं! दुसरे राज्य का हिंदू मुंबई, बल्कि महाराष्ट्र, में खौफज़दा है, क्योंकि कल, एम एन एस और शिव सेना उसे गैर मराठी कह कर सता सकते हैं! इसी तरह एक कोंकणी मुस्लिम जो अच्छी तरह से मराठी बोल सकता है और वह राज ठाकरे की एम एन एस के लिए वोट भी डालता है, लेकिन शिव सेना उसे भी इस बात पर तंग कर सकती है कि वह हिंदू नहीं है!

इन सब बर्बरता के पीछे मुख्य इकाई शिव सेना सुप्रीमो बाल ठाकरे हैं जो खुद महाराष्ट्र के नहीं हैं! १९५५ में ठाकरे, मध्य प्रदेश से महाराष्ट्र आये! पैसा और ताक़त पाने के लिए उन्होंने १९६६ में शिव सेना नाम की एक राजनीतिक पार्टी का गठन किया! पार्टी ने पहले गुजरातियों और दक्षिण भारतियों फिर मुसलमानों के खिलाफ नफरत का एक अभियान शुरू किया! (हालांकि ठाकरे को हिंदू देवताओं में विश्वास नहीं है; अपनी पत्नी मीना ताई के देहांत के बाद उस ने हिन्दू भगवान गणेश जी की मूर्ती फ़ेंक दी थी!)

वर्ष १९९२-९३ में मुंबई के सांप्रदायिक दंगों के दौरान, बाल ठाकरे ने खुलेआम हिन्दुओं को मुसलमानों के खेलाफ़ भड़काया! उन दिनों, अगर मुसलमान शिव सैनिकों के बकवास आरोपों को सच मानता तो हर एक मुसलमान पाकिस्तानी होता! यह सच है कि मराठी आइकन शिवाजी ने अपनी सेना में बहुत से गैर मराठों को भरती कर रखा था! उनकी पैदल सेना में मुसलमानों की भी एक उचित संख्या मौजूद थी!

शिव सेना द्वारा हाल के हमले भी एक मुसलमान शाह रुख खान के खिलाफ थे! खान का कुसूर यह था कि उनहोंने आई पी एल-३ नीलामी के दौरान पाकिस्तानी खिलाड़िओं के साथ किये जाने वाले व्यवहार की निंदा की थी! शाह रुख खान से कहा गया था कि वह पाकिस्तान चले जाएँ, जैसा कि सांप्रदायिक तत्वों के द्वारा कभी कभी मुस्लिम नाम रखने वाले किसी भी व्यक्ति को कहा जाता है! जबकि वास्तविकता यह है कि खान ने फिल्मों की दुनिया में भारत को सम्मान दिलाया है! इन तत्त्वों ने अमिताभ बच्चन, एक गैर मराठी अभिनेता, के साथ भी ऐसा ही किया था!

शिव सेना और एम् एन एस द्वारा किसी भी व्यक्ति के साथ नापाक व्यवहार करने की कोई सीमा नहीं है! नाम नेहाद मराठी का नाम लेने वाले तत्त्वों ने मराठी क्रिकेट आइकन सचिन तेंडुलकर को भी बेईज्ज़त किया है! उन की नज़र में, तेंडुलकर का अपराध यह था कि उनहोंने, सेना के समान, महाराष्ट्र को बकिया भारत से अलग नहीं किया था और कहा था कि "(जैसा भारत का हर भाग सभी भारतीयों के लिए है वैसे) मुंबई (भी) भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए है!" अगर सेना के लोग मराठी का समर्थन करने वाले हैं तो उनहोंने सचिन का विरोध क्यों किया?

आश्चर्यजनक है कि अपने इन करतूतों के होते हुए भी, सेना के लोग ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटरों को भारत में खेलने से रोकते हैं! उन्हें यह अधिकार कहां से मिल गया है! अगर ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर हमला किया जाता है तो उस की निंदा की जानी चाहिए लेकिन इस से पहले हमें देखना चाहिए कि भारत में बसने वाले शिव सेना और एम् एन एस के लोग उत्तर भारतियों के साथ कैसा वेव्हार कर रहे हैं!

शिव सेना और एम् एन एस का कहना है कि वह उत्तर भारतियों के खेलाफ इस वजह से अभियान छेड़ रहे हैं कि यू और बिहार से लोग अनियंत्रित रूप में महाराष्ट में आकर महाराष्ट्रीयनों का रोजगार छीन रहे हैं! लेकिन वह यह सत्य भूल जाते हैं कि उत्तर भारत से आने वाले लोग स्वरोजगार-ऑटो और टैक्सी ड्राईवर, इलेक्ट्रिशियन, प्लंबर, राजमिस्त्री, बढ़ई और दूध का कारोबार करने वाले हैं! स्थानीय लोगों को यह काम करने से कोइ नहीं रोक रहा है!

सत्ता में आने के लिए यदि भाजपा धार्मिक कार्ड खेलने में माहिर है तो शिव सेना और एम एन एस राजनीतिक लामबंदी के लिए क्षेत्रीय वर्चस्व में विश्वास करते हैं! बेशक, शिव सेना धार्मिक कार्ड भी खेलती है! जब तक शिव सेना केवल एक निश्चित धार्मिक अल्पसंख्यक के खिलाफ विष वमन करती थी तो कोई भी उस का खंडन नहीं करता था, लेकिन जब धर्म का लिहाज़ न कर के उस ने सारे उत्तर भारतीयों, चाहे हिन्दू हों या मुसलमान, को निशाना बनाना शुरू किया तो सरे लोग उस के खेलाफ उठ खड़े हुए! फिर भी राज्य सरकार इस बारे में टस से मस नहीं हुई और वह उनके खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने में अनिच्छुक है!

कांग्रेस और एन सी पी की नेतृत्व में चलने वाली महाराष्ट्रा सरकार, कुछ कारणों की वजह से, एम एन एस और शिव सेना की गतिविधियों पर एक मात्र दर्शक बनी हुई है; शायद इस वजह से कि एम एन एस के अन्दर शिव सेना को कमज़ोर करने की क्षमता है! और सरकार मुंबई दंगों के आरोपी शिव सैनिकों को सज़ा नहीं दिलाना चाहती है कयोंकि ऐसा करना कांग्रेस की नरम हिंदुत्व की नीति के खिलाफ हो गा!

इस बारे में बहुत कुछ कहा गया है कि धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस ने शिव सेना और एम् एन एस की गुंडागर्दी को विकसित होने की इतनी अनुमति क्यों दी हुई है! वह जब चाहें उत्तर भारतीयों को मारते हैं, उन्हें परेशान करते और उनकी दुकानों को नुकसान पहुंचाते हैं!

शिवसेना की अस्थापना, बाँट और अंजाम

१९६०: कार्टून के माध्यम से, बाल ठाकरे ने दक्षिण भारतीय प्रवासियों के हाथों मराठियों की लाचारी दिखा कर उन के अन्दर असुरक्षा की भावना पैदा की
१९६६: उन्होंने मुंबई के शिवाजी पार्क में आयोजित रैली में शिव सेना के गठन की घोषणा की
१९६९: कर्नाटक के साथ सीमा विवाद के बाद हुए दंगों में ठाकरे को गिरफ्तार किया गया
१९७० : कृष्णा देसाई, सी पी आयी विधायक, की हत्या में शिव सेना पर आरोप लगाया गया
१९८७ : ठाकरे ने विले पार्ले विधानसभा सीट जीतने के लिए हिंदुत्व का गीत गाया! कोर्ट ने चुनाव रद्द कर दिया!
१९८९ : भाजपा शिव सेना गठजोड़ का गठन
१९९५ : गठबंधन सत्ता में आया! ठाकरे को सांप्रदायिकता फैलाने के आरोप में मताधिकार से वंचित कर दिया गया
१९९९ : शिव सेना गठबंधन को एन सी पी-कांग्रेस गठजोड़ ने हराया
२००३ उद्धव ठाकरे शिव सेना के नए प्रमुख नियुक्त किये गए
२००६: राज ठाकरे ने पार्टी छोड़ दी और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया
२००९: शिव सेना की २००९ के लोकसभा चुनाव में शर्मनाक हार
२००९: शिव सेना और भाजपा गठबंधन का विधानसभा चुनावों में बुरा प्रदर्शन जारी, २००४ के मुकाबले सीटें ६२ से घड कर ४५ हो गयीं


लेकिन जब कांग्रेस को ज़रुरत पड़ती है, तो युवा राहुल गांधी के लिए सुरक्षा को बहुत बढ़ा दिया जाता है! नतीजा के तौर पर शिव सैनिक कार्यकर्ता जिन्होंने ने मुंबई में गांधी का काले झंडे के साथ स्वागत करने का इरादा किया था, उन्हें विरोध तक का मौका नहीं मिलता है!

मुद्दा यह नहीं है कि राहुल गाँधी को इतनी कड़ी सुरक्षा क्यों दी गयी बल्कि कहना यह है कि ऎसी ही सुरक्षा का एहसास हर भारत निवासी को मुंबई में होना चाहिए! और ऐसा तभी हो गा जब राज्य सरकार उत्तर भारतियों की सुरक्षा को यकीनी बनाती है! इस के लिए उसे इस दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है!

लेकिन क्या ऐसा संभव है, खास तौर पर जबकि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने भी मराठी कार्ड खेला है? उन्होंने यह घोषणा दिया था कि २४,००० टैक्सी लाइसेंस उन्हीं को दोबारा जरी किये जाएँ गे जो मराठी बोलते हैं और महाराष्ट्र में १५ वर्ष से निवासी हैं! हालाँकि, शायद ही कोई ऐसा यात्री हो गा जो टैक्सी ड्राइवरों से मराठी में बात चीत करता हो! इस बारे में यह सत्य एक खुला सबूत है कि टैक्सी चालकों को किसी भी वक़्त मराठी न जानने कि वजह से किसी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ा हो!

टैक्सी ड्राइविंग के अलावा, उत्तर भारती मुंबई को आकार देने में बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं! एक अनुमान के अनुसार मुंबई के कुल १.४ करोड़ निवासियों में लगभग चालीस लाख गैर मराठी हैं जो ४०, बड़े पैमाने और छोटे अस्तर पर, तरह के कारोबार में लगे हुए हैं! उदहारण के तौर पर पान की दुकानों में, दूध के कारोबार में और परिवहन और सुरक्षा सेवाओं में! मुंबई शेयर बाजार और बॉलीवुड, शहर के दो बड़े व्यावसायिक संस्थान, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बहुत सारे लोगों को रोजगार देते हैं और इन दोनों को चलाने में बाहरी लोगों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है!

मुंबई में स्थित अक्सर इंडस्ट्रीज़ ,रिलायंस, टाटा समूह, ए सी सी सीमेंट, आदित्य बिरला समूह, महिंद्रा, सेंचुरी मिल्स, बॉम्बे डाइंग, पीरामल, सिप्ला, लूपिन यात्यादी के मालिक गैर मराठी हैं! गैर मराठियों के द्वारा दिया जाने वाला टैक्स मराठियों के ज़रिये दिए जाने वाले टैक्स से कहीं ज्यादा है!

२६/११ मुंबई आतंकी हमले को याद कीजिये और मराठियों का योगदान बिलकुल साफ हो जाएगा! एक आम नागरिक यह सवाल करता है कि उस समय शिव सैनिक कहाँ थे जब गैर मराठी पाकिस्तानी आतंकवादियों का सामना कर रहे थे! एन एस जी कमांडो मेजर संदीप उन्नीकृष्णन, जिन्होंने आतंकवादियों के साथ लड़ाई में अपना जीवन कुर्बान कर दिया था, बंगलूर के एक मलयाली था! बेशक, हेमंत करकरे विजय सालसकर और अशोक काम्टे सहित कई अधिकारी मराठी भी थे लेकिन एन एस जी कमांडो में उत्तर प्रदेश और बिहार के बहुत सरे प्रतिनिधि भी थे!

क्या इस हादसे से शिव सैनिकों को यह नहीं समझना चाहिए कि आपत्ति के समय में गैर मराठी ही काम आते हैं जिन्हें वह अपनी गुंडागर्दी का निशाना बनाते हैं?

सेना और उत्तर भारतियों के मामले में कांग्रेस पार्टी की चुप्पी अपराध से कम नहीं है! यह सेना के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है कि कभी कभी वह अनजाने में कांग्रेस के हाथों में खेलती है! बाल ठाकरे ने पहले यह घोषणा की थी कि वे शाह रुख खान की फिल्म की रिलीज़ के खेलाफ आन्दोलन नहीं करें गे लेकिन एन सी पी के नेता शरद पवार के साथ बातचीत के बाद, ठाकरे अपने पुराने फैसले पर आ गए कि उन्हें फिल्म की रिलीज़ को रोकना है!

अब जब कि सेना के गुंडे शाह रुख खान के अनगिनत प्रशंसकों और मुंबई की जनता के द्वारा हार चुके हैं, तो अब यह देखना है कि उनका अगला निशाना कौन होगा? हकीकत में लूटपाट और दोसरों को पीड़ा देना सेना को विरासत में मिला है!

इतिहासकार इब्राहीम ने अपनी पुस्तक 'द लास्ट स्प्रिंग, महान मुगलों के जीवन और उन का ज़माना" नमी पुस्तक में लिखता है कि "लूटना और छापे मारना शिवाजी की एक प्राथमिक गतिविधि रही...और यही चीज़ मराठा राजनीतिक संस्कृति के उन्नीसवीं सदी में भी पाई जाती है!" शिवाजी दे लगभग २०० वर्ष बाद लिखते हुए डफ नाम का एक इतिहासिकार लिखता है कि " आज भी मराठा अपने शत्रुओं को लूट लेते हैं ताकि वह अपनी जीत का प्रदर्शन कर सकें! और इसे वह इस सिलसिले में असली सबूत मानते हैं!" इस दिन तक भी उन की संस्कृति में कोई बदलाव नहीं आया है!

वह कमजोरों के खिलाफ क्षेत्रीय वर्चस्व का प्रदर्शन कर के अपनी ताक़त दिखाते हैं! वह न सिर्फ भारत के लिए एक निरंतर खतरा हैं बल्कि गैर मराठियों के जीवन के लिए भी!

यदि कोइ केवल मराठियों के लिए ही बात करता है तो वह अपने आप को भारत के बाकी हिस्सों से अलग करने के लिए कोशिस कर रहा है! राजनीतिक दलों के क्षेत्रीय मुद्दों को उठाने चाहिए, लेकिन उन्हें उस क्षेत्रीयतावाद की राजनीति से बचना भी चाहिए जिस से बहुलवादी भारत की एकता को हानि पहुँचने की संभावना है!

सेना जैसे विचारधारा का भारत से सफाया कर देना चाहिए! इस की जितनी निंदा कि जाये कम हो गी! माओवादी भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा हैं! वह निर्दयता से पुलिस वालों को मारते हैं और देश के संविधान का उन के अन्दर कोई सम्मान नहीं है! पूर्वोत्तर भारत में , उल्फा एक अलग राज्य की मांग कर रहे हैं और समानांतर सरकारें भी चला रहे हैं! बहुत सारे संगठन एक अलग कश्मीर के सपने भी देख रहे हैं और उस के लिए उन की हमारे सुरक्षा बलों से लड़ाई जारी है! यह सभी आतंकवादी हैं! लेकिन हमारी सरकार शिव सेना और एम एन एस को ऊपर गिनाये गए संगठनों में क्यों नहीं सम्मलित करती है? यह लोग महाराष्ट्रा को बाकी भारत से अलग करना चाहते हैं!

कुछ वर्ष पहले दक्षिण भारत के लोगों को शिव सेना ने भयभीत किया था और उस का लक्ष उत्तर भारती हैं! अगर कानून स्थायी नागरिकों को शिव सेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के डर में जीना पड़े तो हम सेना को आतंकवादी संगठन क्यों नहीं कहते हैं?

सत्य तो यह है कि सेना मराठियों के प्रति भी वफादार नहीं हैं! कुछ दिन पहले, बाल ठाकरे ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में अपने मराठी वोट बैंक का काफी हिस्सा खोने के बाद, यह कहा था कि " भगवान के साथ साथ मेरा भरोसा मराठियों से भी उठ गया है!"

अब जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा ने खुद को शिव सेना से दूर कर लिया है कयोंकि उन्हें शिव सेना के "मुंबई केवल मराठियों के लिए है" नारे से इत्तेफाक नहीं है,यह उचित समय है कि बकिया भारतीय भी उन को समाज से अलग कर दें! कुछ लोग कहते हैं हो सकता है कि भगवा दलों का फैसला बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते है किया गया हो! कयोंकि भाजपा को भय है कि मुंबई में उत्तर भारतियों के विरोध का समर्थन करने के कारण बिहार के लोग उसे वोट न दें! अफसोस की बात है भगवा ब्रिगेड द्वारा यह परिवर्तन सिर्फ राजनैतिक है!

यह हमारे समय की ट्रेजडी है कि भारत की एकता की बात करने वाले रास्ते से हटा दिए जाते हैं, जबकि भारत को विभाजित करने की कोशिश करने वाले खुले घूम रहे हैं! आंध्र प्रदेश को बाँट कर अलग से एक तेलंगाना राष्ट्र बनाने का समर्थन करने वाले तेलंगाना राष्ट्र समिति के अध्यक्ष चंद्रशेखर राव लोगों से समर्थन की अपील कर रहे हैं और सरकार उन की मांग को पूरी करने के लिए संजीदा भी है! लेकिन आंध्र के पूर्व मुख्यमंत्री वाई एस आर रेड्डी, जो आंध्र प्रदेश के विभाजन के विरोधी थे, अब हमारे बीच नहीं हैं!
ठाकरे परिवार, चाहे बाल का हो या राज का , दोनों देश को बाँटने की बातें कर रहे हैं और उन्हें खुली छूट मिली हुयी है! ऐसा क्यों है?


अब्दुल हमीद यूसुफ
ahameed12@gmail.com

3 comments:

  1. बहुत अच्छा । बहुत सुंदर प्रयास है। जारी रखिये ।

    आपका लेख अच्छा लगा।

    हिंदी को आप जैसे ब्लागरों की ही जरूरत है ।


    अगर आप हिंदी साहित्य की दुर्लभ पुस्तकें जैसे उपन्यास, कहानी-संग्रह, कविता-संग्रह, निबंध इत्यादि डाउनलोड करना चाहते है तो कृपया किताबघर पर पधारें । इसका पता है :

    http://Kitabghar.tk

    ReplyDelete
  2. Resources like the one you mentioned here will be very useful to me! I will post a link to this page on my blog. I am sure my visitors will find that very useful.

    http://winconfirm.com/category/motivational-videos-inspirational-videos/

    ReplyDelete
  3. Excellent post. I was checking constantly this
    blog and I’m impressed! Very helpful information specially the final part :
    ) I take care of such information much. I was seeking this particular information for a very long time.
    Thanks and best of luck.
    bitcoin

    ReplyDelete