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Wednesday 3 March 2010

शिव सेना बनाम भारत


शिव सेना का नारा कि महाराष्ट्र केवल मराठियों के लिए है अब आकर्षण खो चूका है! परिणाम के तौर पर अब शिव सेना की मराठी वोटों पर पकड़ ढीली होती जा रही है!



जबकि पूरा सुरक्षा बल शाह रुख खान की फिल्म "मेरा नाम खान है" के विपरीत शिव सेना के सम्भावित गुंडागर्दी को रोकने के लिए ताय्नात था, आतंकवादियों ने मराठी शहर "पुणे" पर हल्ला बोल दिया! जिस स्थिति में पुणे विस्फोट हुआ था वह बिलकुल ऐसे ही थी जब कि २६/११ के हमले में मराठी सिक्यूरिटी अधिकारी हेमंत करकरे सहित बहुत से वीर मार दिए गए थे! शिव सेना उन्हें बचा नहीं सकी थी!

केवल मराठी के काज़ की बात करना कहने की तुलना में करने से सरल है! शिव सेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के लोग भारतवासियों को यह सन्देश देना चाहते हैं कि " अगर तुम मराठी नहीं हो तो विदेश जा कर कमाई कर सकते हो और शिक्षा ले सकते हो लेकिन तुम्हारे लिए महाराष्ट्र में कोइ जगह नहीं है!"

यहाँ यह बात याद रहे कि शिव सेना हिन्दुओं के भगवन "शिव" जी कि पार्टी नहीं है! बहुत सारे लोग ऐसा समझ कर शिव सेना को अपना समर्थन दे देते हैं! शिव सेना केवल एक राजनैतिक पार्टी है और इस का नाम वयोवृद्ध मराठी नेता शिवाजी की तरफ मंसूब है! यह पार्टी सभी हिन्दुओं के कल्याण की बात करने के बजाय, राजनितिक लाभ प्रदान करने के लिए, सिर्फ मराठियों की बात करती है! और एम एन एस उस के विचारधारा का अन्धा अनुयायी है!

उनका दावा है कि महाराष्ट्रा सिर्फ मराठियों के लिए ही है! उन के अलावा किसी भी अन्य शख्श को यह हक नहीं है कि वहां रह कर आजीविका कमाए या शिक्षा प्रदान करे! हाँ, अगर वह मराठी संस्कृति में अपने आप को रंग लेता है और मराठी बोलने लगता है, तो कोई बात नहीं है! लेकिन इस में भी कुछ संदेह है! विदेशियों का, जो मराठी नहीं हैं, महाराष्ट्र में स्वागत है! जिस तरह चाहें वह यहाँ रह सकते हैं! फिर केवल गरीब भारतीयों को ही सेना के निर्देश का पालन करने पर मजबूर किया जाता है?

इस से भी ज्यादा आश्चर्यजनक है के जो लोग गैर मराठियों के खेलाफ़ आन्दोलन में सब से आगे हैं वही अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में शिक्षा दिलाते हैं! मगर दूसरों को मराठी सीखने पर मजबूर करते हैं! अगर भारत में किसी भाषा का सीखना अनिवार्य बनाना हो तो प्राथमिकता हिंदी को देनी चाहिए, कि यह हमारी राष्ट्रीय भाषा है!

बेशक, कोइ भी कौम अगर अपने पूर्वजों की भाषा से जुड़ी नहीं रहती है तो वह अपनी संस्कृति की रक्षा करने में नाकाम रहे गी! भाषा संस्कृति को प्रभावित करती है और जो अपनी संस्कृति को छोड़ देता है उस की पहचान भी मिटने के कगार पर हो जाती है! अगर केवल इस भावना के साथ सेना पार्टिओं के लोग मराठी से प्रेम करते हैं तो ठीक है! बल्कि उन कि तारीफ़ करनी चाहिए! उन्हें मराठी भाषा के लिए चिंतित रहना चाहिएये और सदा उन उपायों को सोचना चाहिए जिन से यह भाषा बहुत सारी बाधाओं के होते हुए भी पनपती रहे! पर विडंबना यह है कि उत्तर भारतीयों को मराठी सीखने पर मजबूर किया जता है और बहुत सारे मराठी माध्यम शैक्षणिक संस्थान, महाराष्ट्र में भी, बंद हो रहे हैं! क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है? कोई मराठी नेता अपने बच्चों को इन स्कूलों में शिक्षा नहीं दिलाना चाहता है!

अगर किसी को कुछ भी प्रचार करना है, तो उस का आदर्श तरीका यह है कि सब से पहले वह खुद उसे उदाहरण के द्वारा दिखाए! मराठी मानुस के अभियान में ऐसा नहीं दिखता है! जो कुछ यह कर रहे हैं उस में ईमानदारी का अभाव है?

शिव सेना और एम् एन एस दोनों पार्टियाँ अवसरवादी लगती हैं! उनहोंने मराठी अधिकारी हेमंत करकरे की बहुत ज्यादा मुखालफत की! करकरे ने कुछ उन आतंकवादियों को चेहरे को अनावरण करना शुरू किया था जो बहुत सारे मराठियों कि हत्या के लिए जिम्मेदार थे! यहाँ तक कि सैनिकों नें, करकरे को जान से मारने की धमकी भी दे डाली थी!

उल्टा उन्होंने एक गैर मराठी, साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, को समर्थन दिया था! कथित तौर पर आतंकवादी होने की आरोपी ठाकुर, पर मालेगांव बम विस्फोटों में कई मराठियों को मार डालने का इलज़ाम है! न केवल ठाकुर, बल्कि गिरोह के अन्य सदस्यों को, जो नांदेड़ और सांगली में मराठियों को मारने के आरोपी हैं, शिव सेना से समर्थन प्राप्त हुआ! यह इंगित करता है कि सिर्फ "मराठी" ही अकेला कारण नहीं है!

दरअसल, ठाकुर और इस मामले में गिरफ्तार अन्य १० आतंकवादियों को शिव सेना का मर्थन इस लिए मिला कि उनका लक्ष्य, घृणा की राजनीति, एक हैं!

शिव सेना और एम् एन एस के ज़रीये की जाने वाली क्षेत्रीय और धार्मिक राजनीती के कारण चाहे हिन्दू हों या मुस्लिम, दोनों महाराष्ट्र में खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं! दुसरे राज्य का हिंदू मुंबई, बल्कि महाराष्ट्र, में खौफज़दा है, क्योंकि कल, एम एन एस और शिव सेना उसे गैर मराठी कह कर सता सकते हैं! इसी तरह एक कोंकणी मुस्लिम जो अच्छी तरह से मराठी बोल सकता है और वह राज ठाकरे की एम एन एस के लिए वोट भी डालता है, लेकिन शिव सेना उसे भी इस बात पर तंग कर सकती है कि वह हिंदू नहीं है!

इन सब बर्बरता के पीछे मुख्य इकाई शिव सेना सुप्रीमो बाल ठाकरे हैं जो खुद महाराष्ट्र के नहीं हैं! १९५५ में ठाकरे, मध्य प्रदेश से महाराष्ट्र आये! पैसा और ताक़त पाने के लिए उन्होंने १९६६ में शिव सेना नाम की एक राजनीतिक पार्टी का गठन किया! पार्टी ने पहले गुजरातियों और दक्षिण भारतियों फिर मुसलमानों के खिलाफ नफरत का एक अभियान शुरू किया! (हालांकि ठाकरे को हिंदू देवताओं में विश्वास नहीं है; अपनी पत्नी मीना ताई के देहांत के बाद उस ने हिन्दू भगवान गणेश जी की मूर्ती फ़ेंक दी थी!)

वर्ष १९९२-९३ में मुंबई के सांप्रदायिक दंगों के दौरान, बाल ठाकरे ने खुलेआम हिन्दुओं को मुसलमानों के खेलाफ़ भड़काया! उन दिनों, अगर मुसलमान शिव सैनिकों के बकवास आरोपों को सच मानता तो हर एक मुसलमान पाकिस्तानी होता! यह सच है कि मराठी आइकन शिवाजी ने अपनी सेना में बहुत से गैर मराठों को भरती कर रखा था! उनकी पैदल सेना में मुसलमानों की भी एक उचित संख्या मौजूद थी!

शिव सेना द्वारा हाल के हमले भी एक मुसलमान शाह रुख खान के खिलाफ थे! खान का कुसूर यह था कि उनहोंने आई पी एल-३ नीलामी के दौरान पाकिस्तानी खिलाड़िओं के साथ किये जाने वाले व्यवहार की निंदा की थी! शाह रुख खान से कहा गया था कि वह पाकिस्तान चले जाएँ, जैसा कि सांप्रदायिक तत्वों के द्वारा कभी कभी मुस्लिम नाम रखने वाले किसी भी व्यक्ति को कहा जाता है! जबकि वास्तविकता यह है कि खान ने फिल्मों की दुनिया में भारत को सम्मान दिलाया है! इन तत्त्वों ने अमिताभ बच्चन, एक गैर मराठी अभिनेता, के साथ भी ऐसा ही किया था!

शिव सेना और एम् एन एस द्वारा किसी भी व्यक्ति के साथ नापाक व्यवहार करने की कोई सीमा नहीं है! नाम नेहाद मराठी का नाम लेने वाले तत्त्वों ने मराठी क्रिकेट आइकन सचिन तेंडुलकर को भी बेईज्ज़त किया है! उन की नज़र में, तेंडुलकर का अपराध यह था कि उनहोंने, सेना के समान, महाराष्ट्र को बकिया भारत से अलग नहीं किया था और कहा था कि "(जैसा भारत का हर भाग सभी भारतीयों के लिए है वैसे) मुंबई (भी) भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए है!" अगर सेना के लोग मराठी का समर्थन करने वाले हैं तो उनहोंने सचिन का विरोध क्यों किया?

आश्चर्यजनक है कि अपने इन करतूतों के होते हुए भी, सेना के लोग ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटरों को भारत में खेलने से रोकते हैं! उन्हें यह अधिकार कहां से मिल गया है! अगर ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर हमला किया जाता है तो उस की निंदा की जानी चाहिए लेकिन इस से पहले हमें देखना चाहिए कि भारत में बसने वाले शिव सेना और एम् एन एस के लोग उत्तर भारतियों के साथ कैसा वेव्हार कर रहे हैं!

शिव सेना और एम् एन एस का कहना है कि वह उत्तर भारतियों के खेलाफ इस वजह से अभियान छेड़ रहे हैं कि यू और बिहार से लोग अनियंत्रित रूप में महाराष्ट में आकर महाराष्ट्रीयनों का रोजगार छीन रहे हैं! लेकिन वह यह सत्य भूल जाते हैं कि उत्तर भारत से आने वाले लोग स्वरोजगार-ऑटो और टैक्सी ड्राईवर, इलेक्ट्रिशियन, प्लंबर, राजमिस्त्री, बढ़ई और दूध का कारोबार करने वाले हैं! स्थानीय लोगों को यह काम करने से कोइ नहीं रोक रहा है!

सत्ता में आने के लिए यदि भाजपा धार्मिक कार्ड खेलने में माहिर है तो शिव सेना और एम एन एस राजनीतिक लामबंदी के लिए क्षेत्रीय वर्चस्व में विश्वास करते हैं! बेशक, शिव सेना धार्मिक कार्ड भी खेलती है! जब तक शिव सेना केवल एक निश्चित धार्मिक अल्पसंख्यक के खिलाफ विष वमन करती थी तो कोई भी उस का खंडन नहीं करता था, लेकिन जब धर्म का लिहाज़ न कर के उस ने सारे उत्तर भारतीयों, चाहे हिन्दू हों या मुसलमान, को निशाना बनाना शुरू किया तो सरे लोग उस के खेलाफ उठ खड़े हुए! फिर भी राज्य सरकार इस बारे में टस से मस नहीं हुई और वह उनके खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने में अनिच्छुक है!

कांग्रेस और एन सी पी की नेतृत्व में चलने वाली महाराष्ट्रा सरकार, कुछ कारणों की वजह से, एम एन एस और शिव सेना की गतिविधियों पर एक मात्र दर्शक बनी हुई है; शायद इस वजह से कि एम एन एस के अन्दर शिव सेना को कमज़ोर करने की क्षमता है! और सरकार मुंबई दंगों के आरोपी शिव सैनिकों को सज़ा नहीं दिलाना चाहती है कयोंकि ऐसा करना कांग्रेस की नरम हिंदुत्व की नीति के खिलाफ हो गा!

इस बारे में बहुत कुछ कहा गया है कि धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस ने शिव सेना और एम् एन एस की गुंडागर्दी को विकसित होने की इतनी अनुमति क्यों दी हुई है! वह जब चाहें उत्तर भारतीयों को मारते हैं, उन्हें परेशान करते और उनकी दुकानों को नुकसान पहुंचाते हैं!

शिवसेना की अस्थापना, बाँट और अंजाम

१९६०: कार्टून के माध्यम से, बाल ठाकरे ने दक्षिण भारतीय प्रवासियों के हाथों मराठियों की लाचारी दिखा कर उन के अन्दर असुरक्षा की भावना पैदा की
१९६६: उन्होंने मुंबई के शिवाजी पार्क में आयोजित रैली में शिव सेना के गठन की घोषणा की
१९६९: कर्नाटक के साथ सीमा विवाद के बाद हुए दंगों में ठाकरे को गिरफ्तार किया गया
१९७० : कृष्णा देसाई, सी पी आयी विधायक, की हत्या में शिव सेना पर आरोप लगाया गया
१९८७ : ठाकरे ने विले पार्ले विधानसभा सीट जीतने के लिए हिंदुत्व का गीत गाया! कोर्ट ने चुनाव रद्द कर दिया!
१९८९ : भाजपा शिव सेना गठजोड़ का गठन
१९९५ : गठबंधन सत्ता में आया! ठाकरे को सांप्रदायिकता फैलाने के आरोप में मताधिकार से वंचित कर दिया गया
१९९९ : शिव सेना गठबंधन को एन सी पी-कांग्रेस गठजोड़ ने हराया
२००३ उद्धव ठाकरे शिव सेना के नए प्रमुख नियुक्त किये गए
२००६: राज ठाकरे ने पार्टी छोड़ दी और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया
२००९: शिव सेना की २००९ के लोकसभा चुनाव में शर्मनाक हार
२००९: शिव सेना और भाजपा गठबंधन का विधानसभा चुनावों में बुरा प्रदर्शन जारी, २००४ के मुकाबले सीटें ६२ से घड कर ४५ हो गयीं


लेकिन जब कांग्रेस को ज़रुरत पड़ती है, तो युवा राहुल गांधी के लिए सुरक्षा को बहुत बढ़ा दिया जाता है! नतीजा के तौर पर शिव सैनिक कार्यकर्ता जिन्होंने ने मुंबई में गांधी का काले झंडे के साथ स्वागत करने का इरादा किया था, उन्हें विरोध तक का मौका नहीं मिलता है!

मुद्दा यह नहीं है कि राहुल गाँधी को इतनी कड़ी सुरक्षा क्यों दी गयी बल्कि कहना यह है कि ऎसी ही सुरक्षा का एहसास हर भारत निवासी को मुंबई में होना चाहिए! और ऐसा तभी हो गा जब राज्य सरकार उत्तर भारतियों की सुरक्षा को यकीनी बनाती है! इस के लिए उसे इस दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है!

लेकिन क्या ऐसा संभव है, खास तौर पर जबकि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने भी मराठी कार्ड खेला है? उन्होंने यह घोषणा दिया था कि २४,००० टैक्सी लाइसेंस उन्हीं को दोबारा जरी किये जाएँ गे जो मराठी बोलते हैं और महाराष्ट्र में १५ वर्ष से निवासी हैं! हालाँकि, शायद ही कोई ऐसा यात्री हो गा जो टैक्सी ड्राइवरों से मराठी में बात चीत करता हो! इस बारे में यह सत्य एक खुला सबूत है कि टैक्सी चालकों को किसी भी वक़्त मराठी न जानने कि वजह से किसी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ा हो!

टैक्सी ड्राइविंग के अलावा, उत्तर भारती मुंबई को आकार देने में बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं! एक अनुमान के अनुसार मुंबई के कुल १.४ करोड़ निवासियों में लगभग चालीस लाख गैर मराठी हैं जो ४०, बड़े पैमाने और छोटे अस्तर पर, तरह के कारोबार में लगे हुए हैं! उदहारण के तौर पर पान की दुकानों में, दूध के कारोबार में और परिवहन और सुरक्षा सेवाओं में! मुंबई शेयर बाजार और बॉलीवुड, शहर के दो बड़े व्यावसायिक संस्थान, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बहुत सारे लोगों को रोजगार देते हैं और इन दोनों को चलाने में बाहरी लोगों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है!

मुंबई में स्थित अक्सर इंडस्ट्रीज़ ,रिलायंस, टाटा समूह, ए सी सी सीमेंट, आदित्य बिरला समूह, महिंद्रा, सेंचुरी मिल्स, बॉम्बे डाइंग, पीरामल, सिप्ला, लूपिन यात्यादी के मालिक गैर मराठी हैं! गैर मराठियों के द्वारा दिया जाने वाला टैक्स मराठियों के ज़रिये दिए जाने वाले टैक्स से कहीं ज्यादा है!

२६/११ मुंबई आतंकी हमले को याद कीजिये और मराठियों का योगदान बिलकुल साफ हो जाएगा! एक आम नागरिक यह सवाल करता है कि उस समय शिव सैनिक कहाँ थे जब गैर मराठी पाकिस्तानी आतंकवादियों का सामना कर रहे थे! एन एस जी कमांडो मेजर संदीप उन्नीकृष्णन, जिन्होंने आतंकवादियों के साथ लड़ाई में अपना जीवन कुर्बान कर दिया था, बंगलूर के एक मलयाली था! बेशक, हेमंत करकरे विजय सालसकर और अशोक काम्टे सहित कई अधिकारी मराठी भी थे लेकिन एन एस जी कमांडो में उत्तर प्रदेश और बिहार के बहुत सरे प्रतिनिधि भी थे!

क्या इस हादसे से शिव सैनिकों को यह नहीं समझना चाहिए कि आपत्ति के समय में गैर मराठी ही काम आते हैं जिन्हें वह अपनी गुंडागर्दी का निशाना बनाते हैं?

सेना और उत्तर भारतियों के मामले में कांग्रेस पार्टी की चुप्पी अपराध से कम नहीं है! यह सेना के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है कि कभी कभी वह अनजाने में कांग्रेस के हाथों में खेलती है! बाल ठाकरे ने पहले यह घोषणा की थी कि वे शाह रुख खान की फिल्म की रिलीज़ के खेलाफ आन्दोलन नहीं करें गे लेकिन एन सी पी के नेता शरद पवार के साथ बातचीत के बाद, ठाकरे अपने पुराने फैसले पर आ गए कि उन्हें फिल्म की रिलीज़ को रोकना है!

अब जब कि सेना के गुंडे शाह रुख खान के अनगिनत प्रशंसकों और मुंबई की जनता के द्वारा हार चुके हैं, तो अब यह देखना है कि उनका अगला निशाना कौन होगा? हकीकत में लूटपाट और दोसरों को पीड़ा देना सेना को विरासत में मिला है!

इतिहासकार इब्राहीम ने अपनी पुस्तक 'द लास्ट स्प्रिंग, महान मुगलों के जीवन और उन का ज़माना" नमी पुस्तक में लिखता है कि "लूटना और छापे मारना शिवाजी की एक प्राथमिक गतिविधि रही...और यही चीज़ मराठा राजनीतिक संस्कृति के उन्नीसवीं सदी में भी पाई जाती है!" शिवाजी दे लगभग २०० वर्ष बाद लिखते हुए डफ नाम का एक इतिहासिकार लिखता है कि " आज भी मराठा अपने शत्रुओं को लूट लेते हैं ताकि वह अपनी जीत का प्रदर्शन कर सकें! और इसे वह इस सिलसिले में असली सबूत मानते हैं!" इस दिन तक भी उन की संस्कृति में कोई बदलाव नहीं आया है!

वह कमजोरों के खिलाफ क्षेत्रीय वर्चस्व का प्रदर्शन कर के अपनी ताक़त दिखाते हैं! वह न सिर्फ भारत के लिए एक निरंतर खतरा हैं बल्कि गैर मराठियों के जीवन के लिए भी!

यदि कोइ केवल मराठियों के लिए ही बात करता है तो वह अपने आप को भारत के बाकी हिस्सों से अलग करने के लिए कोशिस कर रहा है! राजनीतिक दलों के क्षेत्रीय मुद्दों को उठाने चाहिए, लेकिन उन्हें उस क्षेत्रीयतावाद की राजनीति से बचना भी चाहिए जिस से बहुलवादी भारत की एकता को हानि पहुँचने की संभावना है!

सेना जैसे विचारधारा का भारत से सफाया कर देना चाहिए! इस की जितनी निंदा कि जाये कम हो गी! माओवादी भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा हैं! वह निर्दयता से पुलिस वालों को मारते हैं और देश के संविधान का उन के अन्दर कोई सम्मान नहीं है! पूर्वोत्तर भारत में , उल्फा एक अलग राज्य की मांग कर रहे हैं और समानांतर सरकारें भी चला रहे हैं! बहुत सारे संगठन एक अलग कश्मीर के सपने भी देख रहे हैं और उस के लिए उन की हमारे सुरक्षा बलों से लड़ाई जारी है! यह सभी आतंकवादी हैं! लेकिन हमारी सरकार शिव सेना और एम एन एस को ऊपर गिनाये गए संगठनों में क्यों नहीं सम्मलित करती है? यह लोग महाराष्ट्रा को बाकी भारत से अलग करना चाहते हैं!

कुछ वर्ष पहले दक्षिण भारत के लोगों को शिव सेना ने भयभीत किया था और उस का लक्ष उत्तर भारती हैं! अगर कानून स्थायी नागरिकों को शिव सेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के डर में जीना पड़े तो हम सेना को आतंकवादी संगठन क्यों नहीं कहते हैं?

सत्य तो यह है कि सेना मराठियों के प्रति भी वफादार नहीं हैं! कुछ दिन पहले, बाल ठाकरे ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में अपने मराठी वोट बैंक का काफी हिस्सा खोने के बाद, यह कहा था कि " भगवान के साथ साथ मेरा भरोसा मराठियों से भी उठ गया है!"

अब जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा ने खुद को शिव सेना से दूर कर लिया है कयोंकि उन्हें शिव सेना के "मुंबई केवल मराठियों के लिए है" नारे से इत्तेफाक नहीं है,यह उचित समय है कि बकिया भारतीय भी उन को समाज से अलग कर दें! कुछ लोग कहते हैं हो सकता है कि भगवा दलों का फैसला बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते है किया गया हो! कयोंकि भाजपा को भय है कि मुंबई में उत्तर भारतियों के विरोध का समर्थन करने के कारण बिहार के लोग उसे वोट न दें! अफसोस की बात है भगवा ब्रिगेड द्वारा यह परिवर्तन सिर्फ राजनैतिक है!

यह हमारे समय की ट्रेजडी है कि भारत की एकता की बात करने वाले रास्ते से हटा दिए जाते हैं, जबकि भारत को विभाजित करने की कोशिश करने वाले खुले घूम रहे हैं! आंध्र प्रदेश को बाँट कर अलग से एक तेलंगाना राष्ट्र बनाने का समर्थन करने वाले तेलंगाना राष्ट्र समिति के अध्यक्ष चंद्रशेखर राव लोगों से समर्थन की अपील कर रहे हैं और सरकार उन की मांग को पूरी करने के लिए संजीदा भी है! लेकिन आंध्र के पूर्व मुख्यमंत्री वाई एस आर रेड्डी, जो आंध्र प्रदेश के विभाजन के विरोधी थे, अब हमारे बीच नहीं हैं!
ठाकरे परिवार, चाहे बाल का हो या राज का , दोनों देश को बाँटने की बातें कर रहे हैं और उन्हें खुली छूट मिली हुयी है! ऐसा क्यों है?


अब्दुल हमीद यूसुफ
ahameed12@gmail.com

Saturday 6 February 2010

विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा: गऊ रक्षा आन्दोलन का समर्थन

गऊ का भविष्य बहुत खतरे में

भारत में गाय प्रजाति, जो एक समय में लगभग 70 से अधिक थीं अब कम हो कर सिर्फ 33 बची हैं ! और इन बची हुई मौजूदा नस्लों में भी भुत सारी विलुप्त होने के करीब हैं! परिणाम? भारत की स्वतन्त्रता के बाद गायों की स्न्खेया में ८०% की कमी आ गयी है! भारतवासियों , ख़ास तौर पर गाँव के निवासियों की लिए,

के लिए गाय के महत्व का इनकार नहीं किया जा सकता है! हल ही में गाय की रक्षा के लिए एक वैश्विक अभियान के रूप में शुरू किये गए "विश्व मंगला गऊ-ग्राम यात्रा" को दुनिया भर में करोड़ों लोगों का समर्थन मिला! इस के ज़रीये शुरू किये गए हस्ताक्षर अभियान में सम्मलित होने के लिए विश्व अस्तर पर बहुत सरे लोगों ने अपने हस्ताछर दिए!

गऊ बचाओ यात्रा और रथ यात्रा

बहुत सरे लोग कह सकते हैं की यह गऊ रछा यात्रा अडवानी जी की रथ यात्रा के समान है! परन्तु ऐसा गुमान करना ग़लत है! अडवानी जी की यात्रा राम जनमभूमि को बचने के लिए थी! दुर्भाग्य से उस यात्रा के पश्चात् भड़क उठने वाले सांप्रदायिक दंगों के बारे में कहा गया था की उन्हें रथ यात्रा ने भड़काया है!

भारत हाल ही में तीसरी दुनिया के किसी भी अन्य देश से अधिक शक्ति विकसित की है! यह सिर्फ इस लिए सम्भव हुआ कि भारत ने सफलतापूर्वक एक बहुसांस्कृतिक, बहुभाषी, बहुलवादी और धर्मनिरपेक्ष समाज की स्थापना की है! अब उस का सर्वोच्च प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि उसे बरकरार रखे!

स्वाभाविक रूप से, सभी नागरिकों के बीच समानता और हर एक मजहब के मानने वालों को सम्मान दे कर ही यह लछ्य प्राप्त किया जा सकता है! उदाहरण के लिए, हिंदू धर्म जजिस ने भारत ही में जन्म लिया और यहीं बढ़ा, उस का इस भर्ती से बहुत गहरा लगाव है! यही कारण है कि जब भी हिंदू शब्द विश्व के किसी नुक्कड़ या कोने में बोला जाता है, तो भारत की एक तस्वीर सामने आ जाती है! चूंकि हिंदू धर्म में भयों को बहुत सम्मान दिया जाता है, इस लिए उन की सुरक्षा, कम से कम भारत में अवश्य है!

अक्सर भारती गऊ हत्या करते हैं


बहर हाल, यह एक बहतु बड़ी ट्रेजडी है कि मानव के अंदर पाई जाने वाली अच्छे खाग पदार्थों कि लालच ने हमेशा गायों को खतरे में रक्खा है! वह गायों को न सिर्फ मांस के लिए काटता है बल्कि अन्य वेव्सायिक लाभ के लिए भी उन्हें मारा जाता है! अधिक चिंताजनक विडंबना यह है कि मुसलमानों और ईसाइयों के साथ कुछ हिन्दू भी गोहत्या के अमानवीय व्यवहार में शामिल हो रहा हैं! वे कुछ वैदिक छंद को इंगित करके इस व्यवहार को सहीह बताए हैं!


वैदिक दौर में बीफ

स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि "हिंदू धर्म में, वैदिक युग एक सब से गौरवशाली युग है!" वेदों से लिया गया धर्म हिन्दुओं के बीच आदर्श मन जाता है! कहा जाता है कि, उस समय गाय कई उपयोगिताओं और बहुत से आशीर्वाद प्रदान के कारण "अगन्या" (जिसे मारा नहीं जा सकता है ) मानी जाती थी! अथर्ववेद की मानेंतो वह गाय का मांस खाने को पूर्वजों के खिलाफ एक अपराध खेयाल करता है! ब्रहस्पति (प्रार्थना या भक्ति का देवता), कहाजाता है, उन कि संतान ले लेता है जो बीफ़ खपत करते हैं!

मगर, कुच्छ वैदिक परंपराओं के अनुसार, "एक बांझ गाय या शादी के समय या किसी मेहमान के लिए कट दी जाती थी!" इसी तरह बहुत से बलिदानों के अवसर पर देवता भक्त गाय कटा करते थे!

ब्राह्मण जो मेहमानों कि मेजबानी को खुद भगवान की पूजा कि तरह समझते थे , एक बड़े मेहमान के लिए बकरी या बाँझ गाय को मार देते थे!

स्वामी विवेकानंद जी ने मदुरा में अपने मेजबानो को संबोधित करते हुए एक बार कहा था कि " "इसी भारत में, एक ऐसा समय था जब बीफ खाए बिना, कोई ब्राह्मण एक ब्राह्मण रह ही नहीं सकता था! तुम्हें वेदों में पढ़ने को मिले गा कि कैसे जब एक, एक राजा, संन्यासिन, या एक महान आदमी किसी घर में आता था तो सब से अच्छा बैल ज़बह किया जाता था!" उन्होंने यह भी कहा कि " उस अवधि में, पांच ब्राह्मण एक गाय को चट कर जाया करते थे!"

क्या आर्या शाकाहारी थे?

आर्या लोग, जौ, दूध, दही, मक्खन, मटन और गोमांस खाया करते थे!

आजमगढ़ के एक महान इतिहासकार, पद्म भूषण से सम्मानित, महा पंडित राहुल संक्रित्ययान (संकृत्यायन) ने अपनी पुस्तक "रिग्वेदिक आर्या" में लिखा है कि ऋग्वेद युग में ज्यादातर लोग कृषि पर निर्भर थे!
रेशम के कपडे तैयार करने के लिए लाखों रेशम के कीड़ों को मारा जाता है

गाय, घोडे और बकरियों उन कि मुख्या संपत्ति की थी और "उन में से कोई ऐसा नहीं था जो मांस नहीं खता था!"


हिंदू धार्मिक हस्तियाँ और मांस

इस तरह का एक बयान मिलता है कि श्री राम और सीता जी मांस का सेवन करते थे! राम जी बहुत सारी पदार्थों के अलावा गाय का मांस और शराब भी आहार के तौर पर लेते थे!

सीता जी ने रावण से, जो एक संत बन कर उनके पास आया था, कहा था, "! स्वामीजी इस कुर्सी पर बैठिये! इस जल से अपने पैरों को धो लीजिये! इस जंगल में से जो चाहो उसे खाइए! मेरा पति फल, आलू, और गोश्त आदि ले कर आ ही जाये गा!" इस तरह कि बात वाल्मीकि रामायण में मिलती है!

रामायण और महाभारत में इस किस्म के उदहारण मिलते हैं कि राम और कृष्ण जी ने शराब पि और गोश्त भी खाया! सीता जी ने गंगा देवी को गोश्त, चावल, और हज़ार बर्तन शराब कि मन्नत मानी थी! "हमारे लिए दयालु बनो, 'हे देवी, और मैं अपने घर वापस हो कर, तुझे पूजूं गी एक हज़ार शराब से और मांस के साथ अच्छी तरह तैयार चावल से!" (रामायण)
हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान ने कुछ को खाने के लिए बनाया है और कुच्छ को इस लिए ताकि खाए जाएँ!

मनुस्म्र्ती में लिखा है कि" जो उन खाई जाने वाली चीज़ों का मांस खाते हैं वह कुछ भी बुरा नहीं करते, चाहे वह इस कम को हर रोज़ करे, क्योंकि खुद भगवान ने कुच्छ को खाने कि लिए बनाया है और कुच्छ को ताकि उन्हें खाया जाये!"
कैसे हो गए शाकाहारी?

गौतम बुद्ध, बौद्ध धर्म के संस्थापक, और महावीर, जैन धर्म के संस्थापक, दोनों ने अहिंसा का प्रचार किया! उनहोंने लोगों को शाकाहारी भोजन लेने का निर्देश भी दिया! यह माना जाता है कि यह उनके उपदेश का प्रभाव है कि हिंदुओं ने भी शाकाहारी भोजन अपना लिया, जिस में किसी भी हाल में गोश्त शामिल नहीं है! अन्यथा, हिन्दुओं कि वैदिक युग से ही मांस खाने कि परम्परा रही है!

"बुद्ध और महावीर ने अपने अनुयायियों को पशुओं के वध से बचने की जरूरत पर जोर दिया और वह उन के दृष्टिकोण को तब्दील करने में इस हद तक कामयाब हो गए कि अब कुच्छ मज़हबी पुस्तक जैसे महाभारत और मनुस्मृति भी ऐसे बलिदान का ताज्केरा करती हैं जिस में जानवरों का कोई वध शामिल नहीं है!" यह बात इतिहासकार ओम प्रकाश ने लिखी है!

उन्होंने यह भी लिखा है कि, " जबकि बौद्ध धर्म, जैन धर्म और अशोका और कुमारपला (कुमारापाला) जैसे शासकों के आदेशों ने भारतीयों को शाकाहारी बना दिया, वहीं, वैदिक धर्म के प्रभाव और कई विदेशी जनजातियों की असर ने भारतीयों को मांसाहारी ही बनाये रखा!"

ओम प्रकाश ने एक इतिहासकार बुह्लेर के हवाले से लिखते हैं कि मांस आहार के इस्तेमाल के खिलाफ नियम बाद प्रक्षेप हैं, लेकिन यह कहनाशायद ज्यादा मुनासिब हो गा कि जैसे जैसे बुद्ध और महावीर (और शायद अशोका भी) के निर्देशों ने लोगों के नजरिये को बदला, वैसे वैसे शाकाहारी के नियम भी दाखिल होते गए!

असल में गौतम बुद्ध लोगों को ब्रह्मिनों की ग़ुलामी से छुड़ाना चाहते थे और ब्रह्मिन परमेश्वर के नाम पर लाखों पशुवों को कुर्बान करते थे! महात्मा जनौरों को बलि देने से अच्छा उन्हें मुक्त कर देना ज़यादा अच्छा समझते थे! उस वक़्त, छोंकी, लोग पशुवों पर निर्भर करते थे इस लिए उन्हें बुद्ध कि बातें बहुत भली मालूम हुईं और वह तेज़ी से बुद्ध धर्म अपनाने लगे! ब्राह्मणों ने लोगों को बुद्धिस्ट होने से रोकने के लिए, जानवरों की बलि देने पर मुकम्मल पाबन्दी लगा दी और अपने इस कम को हिन्दू धर्म का आदेश बताया! गाय पहले ही से एक धार्मिक पशु के रूप में जाना जाता था, तो वह अब बहुत ज़यादा पवित्र होगयी!

बातें अलग अलग हैं

लेकिन कुछ दूसरे विरोधाभासी बयानात भी पाए जाते हैं जिन पर आधारित हो कर इतिहासकार द्विन्देरा नारायण झा ने यह निष्कर्ष निकाला है कि मांस, यहां तक कि गाय का भी, प्रारंभिक बौद्धों और जैनियों का आहार था! कई पक्षी, मछली और पशुओं का शिकार किया जाता था और उनके मांस को उत्सव के मौकों पर इस्तेमाल किया जाता था!

झा के मुताबिक, Mahaparinibbana Sutta और Anguttara Nikaya के ग्रंथों से पता चलता है की बुद्ध गे का गोश्त और अन्य मांस खा लिया करते थे! "वास्तव में, बुद्ध सूअर का मांस खाने के बाद मरे थे!" वह और भी लिखते हैं की "शाकाहार, एक ऐसे समाज में जहाँ है कि सभी प्रकार के मांस, सुअर, गैंडा, गाय, भैंस, मछली, सांप, सहित पक्षी खाए जाते थे, बौद्ध भिक्षुओं के लिए एक व्यवहार्य विकल्प नहीं था!"

इब्तेदा में जैन मांस भक्षण करते थे! झा के मुताबिक महावीर ने एक बार एक दुश्मन के साथ युद्ध के लिए योग शक्ति पाने के लिए चिकन खाया था! झा कहते हैं कि "उनकी एकमात्र शर्त थी कि खाना पकाने वाली औरत से कह दें, कि वह ऎसी मुर्ग़ी पकाए जिसे बिल्ली ने पहले ही मार डाला हो! न कि ऐसी मुर्ग़ी बनाये जिसे ज़बह करना पड़े!"

क्या यह शाकाहार की बात करने वालों का डबल मानक नहीं है? वोह तो दुसरे लोगों से कहते हैं कि किसी भी जीवित प्राणी को मरना अमानवीय है लेकिन वह खुद रेशम के कपड़े पहनते हैं! जबकि रेशम के कपड़े लाखों रेशम के कीड़ों को मरने के बाद तैयार किये जाते हैं! किसी भी जीव को न मरने कि वकालत करने कि वजह से सब से पहले उन्हें रेशमी कपड़े का उपयोग करना रोक देना चाहिए!

इसके विपरीत, जैन, बुद्ध और हिन्दू धर्मों के नेताओं को रेशमी कपड़ों में देखा जा सकता है! कहाँ है दावा है और कहाँ गयी मानवता?

बहरहाल , बुद्ध और महावीर अहिंसा और शाकाहार के प्रचार के लिए जाने जाते हैं! यदि ऐसा न होता तो अक्सर जैन और बौद्ध को मानने वाले शाकाहारी नहीं होते बल्कि वोह गाय का गोश्त भी खाते!

गाय की रक्षा अवश्य की जाये

जैसा कि पहले लिखा जा चूका है कि गाय कि बची हुई नसल सुरक्षा उच्च प्राथमिकता की सूची में होनी चाहिए! ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर लोग पूरी तरह से कृषि पर निर्भर हैं और उनके रहने के लिए गायों की आवश्यकता का इंकार नहीं किया जा सकता है! गाय उन किसानों को कृषि के लिए पर्याप्त मात्र में खाद देती है, उन के बच्चों को दूध पिलाती है! बैल खेतों को जोत कर उसे कृषि यौग्य बनाता है और भारत के दूर के छेत्रों में जहाँ अभी भी ट्रेन या बस की सेवाएँ उपलब्ध नहीं हैं, वहां सामान और खुद आदमियों यहाँ से वहां लेन ले जाने में सहायता करता है! गाय के दूध से और बहुत सारी खाग्य पदार्थें बनाई जाती हैं जो मानव शरीर के लिए अत्यंत ज़रूरी हैं! इस लिए, कम से कम दर्जे में बची हुई गायों की प्रजातियों को बाकी रखने और उन्हें बढ़ने कि अवाशेकता है! परन्तु, अगर उन के ज़बह करने पर पाबन्दी लगाई जाती है तो यह मकसद कभी भी हासिल नहीं हो सकता है!

घायल बैल और बांझ गाय का क्या हो गा ?

आदमी, स्वाभाविक रूप से है, उसी चीज़ में इच्छुक है जो उसके उद्देश्य को पूरा करता हो! एक बैल जिसे चोट लग गयी हो या एक गाय जो अब दूध नहीं देती हो या बाँझ हो चुकी हो, हव मानव को उस हिसाब से लाभ प्रदान नहीं कर सकते जितना कि वह उन के पीछे खर्च करे गा! हाँ, वही गाय या बैल, अगर किसी कंपनी को दे दिए जाएँ जो उनके उत्पादनों या खुद उनका बिज़नेस करते हों , तो वह लाभ प्रदायक हो जाएँ गे! अगर, गाय हर उम्र में और हर हाल में फ़ाएदेमन्द हो तो लोग इस से उत्साहित हो कर ज्यादा से ज्यादा गायो को पालें गे और इस तरह से उन गायों को कोई भी खतरा नहीं रहे गा! उन कि अदद आये दिन बढ़ती रहे गी! वरना, एक गरीब किसान जिस के लिए एक दिन के भोजन का प्रबंध करना भी कठिन हो, वह बगैर फाएदे के किसी गाये या बैल को कैसे खिला सकता है?

गायों की रक्षा के आदर्श तरीका यां नहीं है कि उनकी हत्या पर प्रतिबंध लगाने की वकालत की जाये! कयोंकि यह उन लोगो को हतोत्साहित करे गा जो किसी ज़ख़्मी बैल या बाँझ गाय को खिलने नहीं सकते हैं!

अगर व्यापार बिंदु से देखा जाये तो भी गोहत्या पर प्रतिबंध व्यावहारिक नहीं दिखता है! गायों, उनके खालों और उनके सम्बंधित उत्पादों का एक विशाल पैमाने पर व्यापार होता है! बहुत सरे हिन्दू भाई या तो इन व्यापारों से अपनी दो वक़्त की रोज़ी रोटी कमाते हैं! हमारे रिपोर्टर का कहना है कि बैंगलोर की पांच बड़ी गऊ बाजारों में ९८% हिन्दू भी काम करते हैं!

यदि किसी विशेष उत्पाद के लिए बहुत मांग हो तो उस की आपूर्ति में वृद्धि होती है! अगर गऊ उत्पादन कि मांग ज्यादा होती है तो और ज्यादा किसान गायों का पालन पोषण शरू करें गे! इस तरह से गायों कि तादाद भारत में बढ़ाई जा सकती है! इस से किसानों को आर्थिक फायदा भी हो गा!

बहुत से मुसलमान बीफ नहीं खाते

दिलचस्प बात यह है कि आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में रहने वाले भुत से मुसलमान गाय और बछड़े का मांस नहीं खाते हैं! उनका दावा है कि वह अरब से भारत आये हैं और वह सयद हैं, इसलिए वह गाय का मांस नहीं खा सकते!

इसी तरह, शिन, पाकिस्तानी मुसलमान जो दर्दिस्तान छेत्र (दर्दिस्तान Gottlieb William कि एक इस्तेलाह है जिसे वह पाकिस्तान के उत्तरी क्षेत्रों के लिए इस्तेमाल करता है!) में रहते हैं वह गाय को नीचा समझते हैं, उन के साथ सीधे संपर्क से बचते हैं, उन का दूध नहीं पीते, उस के गोबर को ईंधन के लिए प्रयोग करते है, और मांस को खाघ के लिए स्वीकार नहीं करते!

अब भी बकरियों के बाज़ार में अरबी शब्दावली का प्रयोग होता है, जिस का मतलब है की इस्लाम के सरचश्मा अरब असल में बकरियों ही में व्यापार करते थे

अरब लोग, इस्लाम की जड़, गोमांस नहीं खाते थे! यह केवल तब हुआ जब मुसलमानों ने भारत में प्रवेश किया, कि उन्होंने अपने भोजन में गाय का मांस भी शामिल किया! भारत के कई क्षेत्रों में, अरबी शब्दावली अभी भी बकरी बाजार में बोली जाती है! इस से यह संकेत मिलता है कि अरबों ने अन्य पशुओं की तुलना में बकरियों के व्यापार किया!
नेपाल में भैंस कि हत्या होती है

अब तक भी, भैंसों सहित बहुत सरे पशुओं का नेपाल में बलिदान किया जाता है! एक अनुमान के अनुसार सिर्फ इसी वर्ष ३, ००, ००० से ५, ००,००० जानवरों और पक्षियों को देवी Gadhimai के लिए बलिदान किया गया!

यहाँ यह यद् रहे कि Gadhimai मंदिर विश्व में केवल हिंदू राष्ट्र नेपाल में स्थित है! मंदिर के एक पुजारी ने कहा कि "अगर मैं तुम्हें एक मोटा अनुमान दूं तो लगभग, २०,००० भैंस, ३०,०००-३५,००० बकरी और अनगिनत पक्षियों और कबूतरों को इस दिन उदय जाता है, और उन में से ज्यादा तर को बलि दे दी जाती है!"

कैसे मनुष्य के खूनी गायों के रक्षक हो सकते हैं

यह बहुत आश्चर्यजनक है कि गौ संरक्षण के वकील धर्मनिरपेक्ष लोगों की हत्या की भी वकालत कर रहे हैं! पिछले कुछ ऐतिहासिक घटनाओं को सरसरी तौर पर देख कर पता चलता है कि चाहे वह राम जन्मभूमि के सहयोगी हों या गऊ रक्षा आंदोलनों के सहयोगी, वह सब से आगे आगे देखे गए हैं निर्दोष लोगों का खून बहाने कि बारी आयी है; चाहे बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद के दंगे हों या भागलपुरके दंगे ! आम भावना यहस्वीकार नहीं करती है कि मानव रक्त के प्यासे गऊ की रक्षा करने वाले हो सकते हैं! होना तो यह चाहिए कि मानव के खून को प्राथमिकता दी जाये, जो कि परमेश्वर की सभी रचनाओं में सब से उत्तम है, न कि उन जानवरों के रक्त को जिन्हें ईश्वर ने खाने कि लिए पैदा किया है!

क्या यह यात्रा केवल राजनीतिक रूप से सही है?

कई लोगों का कहना है कि दुनिया भर में गाय संरक्षण आंदोलन राजनीति से प्रेरित है! एह एक ऐसा दोष है जो आडवाणी जी की रथ यात्रा के बारे में भी लगाया गया था! इसे कम के लिए समर्पित एक वेबसाइट के अनुसार यात्रा, श्री राघवेश्वारा भारती स्वामीजी जो कर्नाटक में Ramachandrapura मठ के शंकराचार्य हैं, के द्वारा प्रेरित है! यह सच है कि धार्मिक भावनाओं को भारत में राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया गया है चाहे वह राम मंदिर का केस हो या गऊ रक्षा का मुद्दा हो!

डी.एन. झा का मानना है कि गऊ की पवित्रता, इसकी मूल भावना में, दयानंद सरस्वती के १९ वीं सदी में गाय संरक्षण आंदोलन से जा कर मिलती है! सरस्वती (१८२४ -१८८३) ने गाय की रक्षा के लिए एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेड़ा था जिस के कारण बाद में कई हिंदू और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दंगे भी हुए थे! झा का मन्ना है कि "गाय, गाय-संरक्षण आंदोलन के साथ ही एक व्यापक राजनीतिक लामबंदी का उपकरण हो गयी!"

१०८-दिन लंबी विश्व मंगला गऊ ग्राम यात्रा, जो कुरुक्षेथरा (हरयाणा) में ३० सितम्बर, २००९ को शुरू हुई और नागपुर में १७ जनवरी, २०१० को समाप्त हुई, का समय अपनी मंशा के बारे में संदेह उठता है! खास तौर पे जब कि आर एस एस के थिंक टैंक अरुन शूरी ने कहा है कि राम जन्मभूमि मुद्दा में अब कोई दम नहीं रहा है!

हालांकि इस यात्रा के तात्कालिक उद्देश्य, अन्य धर्मों की भी मदद से, गाय की सुरक्षा को सुनिश्चित करना है, इस का समय बताता है कि इस के पीछे राजनीतिक इच्छा छिपी हुई है!

भारतीय राजनीति में, यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की समर्थन वाली भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है और उस के लिए "करो या मरो" कि स्थिति है!

इसलिए, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह यात्रा भारत में एक बार फिर से, बाबरी मस्जिद के विध्वंस से पहले कि तरह, सम्पर्दयिकता को भड़काने का एक प्रयास हो ताकि पार्टी कि साख को बाकी रखने में मदद मिले! भारतीय इतिहास में ऐसे बहुत से उदाहरद मिलते हैं जहाँ धर्म के नाम पर राजनैतिक लाभ उठाए गए हैं! खा जाता है कि बाबर, अकबर, जहांगीर और औरंगजेब ने गोहत्या पर सीमित प्रतिबंध लगाया था ताकि उस समय के ब्राह्मण और जैन के दिलों को जीतें!

यात्रा सारे हिंदुओं द्वारा समर्थित नहीं है

सच बात तो यह है कि बहुत से हिंदू और यहां तक कि दक्षिण भारत में ब्राह्मण भी बीफ़ खाते हैं! शायद, इसी कारण बहुत कम हिंदुओं- १२०३९ , जनवरी २२, २०१०, के अनुसार- ने इस यात्रा के समर्थन में हस्ताक्षर किए! और उन हस्ताक्षरों में भी भारत से हिंदुओं की संख्या कुछ ज़यादा नहीं है! हालांकि वेबसाइट से पता चलता है, कि लोगों ने अमेरिका, ब्रिटेन, दुबई, आस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, वेनेजुएला, हवाई, मलेशिया, श्रीलंका, ओमान, कनाडा, जर्मनी, चीन, पुर्तगाल, पोलैंड, मलेशिया और ब्राजील से भी हस्ताक्षर दिए हैं!

क्या किया जाये?

अब यह बिलकुल वज़ह हो गया है कि बहुत सरे हिन्दू भी गाय का गोश्त खाते हैं! यह किसी भी तरह उचित नहीं कि गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने के नाम पैर लोगों को अपने वैदिक धर्म का पालन करने से रोक दिया जाये और उन सइ कहा जाये कि अपनी धार्मिक पुस्तकों का पालन न करें!

बहुत से हिंदू, ब्राह्मण भी, अब भी गोमांस की खपत करते हैं! यह इस बात का सबूत है कि हिंदू धर्म में, वेदों के अनुसार, सख्ती से गाय हत्या को मना नहीं किया गया है! बहुत सरे बलिदान बगैर गाय और बैल की हत्या के पूरे नहीं होते हैं!
अब समय आ गया है कि हिंदू भाई इस बात पर विचार करें और राजनीति से प्रेरित आंदोलन से अप्रभावित रहें! वरना हमारे देश में शांति एक बार फिर ख़त्म हो जाये गी!

जे मसीह

Thursday 4 February 2010

ठाकरे बंधु गिरफ्तार हों

अब भी कठोर नहीं हुआ गया तो भारत के एक होने का विचार ही कमजोर होता जाएगा

यह विचार इस देश की बुनियाद है कि पूरा भारत, हर भारतीय का है, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, भाषा, प्रदेश का हो। उसे कहीं भी काम करने, रहने, जीने का पूरा हक है जिसे कोई भी ताकत कभी चुनौती नहीं दे सकती। लेकिन शिव सेना, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना जैसे संकीर्ण और राष्ट्र विरोधी तत्व भारत की इस बुनियाद में ही मठ्ठा डालने का काम लगातार करते रहे हैं और इस मुल्क की बदकिस्मती से इन्हें और इन जैसी ताकतों को न केवल बर्दाश्त किया गया है बल्कि इतना बढ़ावा दिया गया है कि ये अब खुलेआम देश की एकता को चुनौती देने लगे हैं। कांग्रेस के महासचिव राहुल गाँधी, गृहमंत्री पी. चिदंबरम, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत, भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नितिन गडकरी, प्रमुख उद्योगपति मुकेश अंबानी, फिल्म निर्माता-निदेशक महेश भट्ट आदि तमाम नामीगिरामी भारतीय, भारत एक है और सबका है, इस विचार के हामी हैं और यह शुभ है कि ये सभी शिवसेना की धमकियों के आगे झुकने को तैयार नहीं हैं। यहाँ तक कि शाहरुख खाँ भी जिनकी आगामी फिल्म "माई नेम इज खान" को मुंबई तथा महाराष्ट्र में रिलीज न होने की धमकी दी जा रही है। लोकसभा के अध्यक्ष जैसे जिम्मेदार पद पर रहे शिव सैनिक मनोहर जोशी जैसे नेता खुलेआम धमका रहे हैं कि शिव सेना ने कहा है तो शाहरुख को आईपीएल में पाकिस्तानी खिलाड़ियों को शामिल करना चाहिए था, इस टिप्पणी को वापिस लेना ही होगा। मगर शाहरुख खाँ कहते हैं कि मैंने जो कहा है, उस पर मैं माफी नहीं माँगँ गा। और क्यों माँगना चाहिए उन्हें माफी? किस बात के लिए? आईपीएल में पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ियों को शामिल करने की बात कहने का हक क्या किसी को नहीं है? और क्या शाहरुख इस मामले में अकेले हैं?

इसलिए राहुल गाँधी और शाहरुख खाँ एक ही लड़ाई अलग-अलग जगहों से लड़ रहे हैं। राहुल, गडकरी आदि जो कह रहे हैं उसके पीछे बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों की तात्कालिक राजनीतिक लाभ की दृष्टि हो तो भी भारत एक है, यह सबका है, इसमें सबको राय रखने का हक है, यह विचार अपने आप में इतना ताकतवर है कि इसके अर्थ चुनावी राजनीति के परे जाते हैं। यह मौका है जब शिवसेना-मनसे के जहरीले प्रचार अभियान तथा धमकियों के विरुद्ध सभी भारतीयों को यह कहना होगा कि हाँ मुंबई पर जो आतंकवादी हमला हुआ था, उसमें महाराष्ट्र के पुलिसकर्मियों ने भी बेशक जान दी थी। लेकिन इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि जब मुंबई को बचाने का सवाल आया तो किसी भारतीय ने- चाहे वह महाराष्ट्रीयन हो, उत्तर भारतीय हो या कोई और- उसने एक भारतीय के रूप में ही सोचा था। वक्त आ चुका है कि इनके खिलाफ अदालत में जाकर कहा जाए कि इन्होंने संविधान के अनुच्छेद १९ में देशवासियों को प्राप्त मौलिक अधिकारों का हनन किया है। बाल ठाकरे, राज ठाकरे, उद्धव ठाकरे जैसे तत्वों को जेल नहीं भेजा जाएगा, इनके समर्थकों के प्रति कठोर नहीं हुआ जाएगा, तो एक दिन भारत के एक होने का विचार ही कमजोर होता जाएगा ।

नयी दुनिया