अब भी कठोर नहीं हुआ गया तो भारत के एक होने का विचार ही कमजोर होता जाएगा
यह विचार इस देश की बुनियाद है कि पूरा भारत, हर भारतीय का है, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, भाषा, प्रदेश का हो। उसे कहीं भी काम करने, रहने, जीने का पूरा हक है जिसे कोई भी ताकत कभी चुनौती नहीं दे सकती। लेकिन शिव सेना, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना जैसे संकीर्ण और राष्ट्र विरोधी तत्व भारत की इस बुनियाद में ही मठ्ठा डालने का काम लगातार करते रहे हैं और इस मुल्क की बदकिस्मती से इन्हें और इन जैसी ताकतों को न केवल बर्दाश्त किया गया है बल्कि इतना बढ़ावा दिया गया है कि ये अब खुलेआम देश की एकता को चुनौती देने लगे हैं। कांग्रेस के महासचिव राहुल गाँधी, गृहमंत्री पी. चिदंबरम, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत, भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नितिन गडकरी, प्रमुख उद्योगपति मुकेश अंबानी, फिल्म निर्माता-निदेशक महेश भट्ट आदि तमाम नामीगिरामी भारतीय, भारत एक है और सबका है, इस विचार के हामी हैं और यह शुभ है कि ये सभी शिवसेना की धमकियों के आगे झुकने को तैयार नहीं हैं। यहाँ तक कि शाहरुख खाँ भी जिनकी आगामी फिल्म "माई नेम इज खान" को मुंबई तथा महाराष्ट्र में रिलीज न होने की धमकी दी जा रही है। लोकसभा के अध्यक्ष जैसे जिम्मेदार पद पर रहे शिव सैनिक मनोहर जोशी जैसे नेता खुलेआम धमका रहे हैं कि शिव सेना ने कहा है तो शाहरुख को आईपीएल में पाकिस्तानी खिलाड़ियों को शामिल करना चाहिए था, इस टिप्पणी को वापिस लेना ही होगा। मगर शाहरुख खाँ कहते हैं कि मैंने जो कहा है, उस पर मैं माफी नहीं माँगँ गा। और क्यों माँगना चाहिए उन्हें माफी? किस बात के लिए? आईपीएल में पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ियों को शामिल करने की बात कहने का हक क्या किसी को नहीं है? और क्या शाहरुख इस मामले में अकेले हैं?
इसलिए राहुल गाँधी और शाहरुख खाँ एक ही लड़ाई अलग-अलग जगहों से लड़ रहे हैं। राहुल, गडकरी आदि जो कह रहे हैं उसके पीछे बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों की तात्कालिक राजनीतिक लाभ की दृष्टि हो तो भी भारत एक है, यह सबका है, इसमें सबको राय रखने का हक है, यह विचार अपने आप में इतना ताकतवर है कि इसके अर्थ चुनावी राजनीति के परे जाते हैं। यह मौका है जब शिवसेना-मनसे के जहरीले प्रचार अभियान तथा धमकियों के विरुद्ध सभी भारतीयों को यह कहना होगा कि हाँ मुंबई पर जो आतंकवादी हमला हुआ था, उसमें महाराष्ट्र के पुलिसकर्मियों ने भी बेशक जान दी थी। लेकिन इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि जब मुंबई को बचाने का सवाल आया तो किसी भारतीय ने- चाहे वह महाराष्ट्रीयन हो, उत्तर भारतीय हो या कोई और- उसने एक भारतीय के रूप में ही सोचा था। वक्त आ चुका है कि इनके खिलाफ अदालत में जाकर कहा जाए कि इन्होंने संविधान के अनुच्छेद १९ में देशवासियों को प्राप्त मौलिक अधिकारों का हनन किया है। बाल ठाकरे, राज ठाकरे, उद्धव ठाकरे जैसे तत्वों को जेल नहीं भेजा जाएगा, इनके समर्थकों के प्रति कठोर नहीं हुआ जाएगा, तो एक दिन भारत के एक होने का विचार ही कमजोर होता जाएगा ।
नयी दुनिया
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Thursday, 4 February 2010
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